यूपी/आजमगढ़ : देश गुलाब था हर तरह आजादी लोगों के जुबान पर एक ही शब्द था आखिर देश कब आजाद होगा। भारत में शायद ही कोई ऐसा दिल रहा होगा, जिसे गुलामी का अंधेरा राम आया हो। वैसे तो प्रत्येक भारतीय के दिल में चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान सभी के दिलों में आज़ादी की शर्मे रौशन थीं।
देश प्रेमी दिलों में आज़ादी की रौशन ज्योति की तपिश ने गुलामी की मोटी-मोटी बेड़ियों को पिघला कर रख दिया। इस तरह भारत देश ने गुलामी की लागत से छुटकारा पाकर आज़ादी की नेमत को हासिल किया। इस लेख में महान क्रांतिकारी शेक रजब अली (Sheikh Rajab Ali) के भारत माता से मोहब्बत के बारे में चर्चा करेंगे।
महान एवं नामी-ग्रामी स्वतंत्रता सेनानियों के संबंध में तो लोग कुछ न कुछ जानते ही हैं, लेकिन वतन के गुमनाम शहीदों के कारनामे तो दूर की बात है, उनके नामों से भी कोई परिचित नहीं है। इस बड़ी कमी को मद्देनजर रखते हुए एक गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी शैख रजब अली शहीद का यहां उल्लेख किया जा रहा है।
जन्म स्थान
इनका जन्म शहीद, ज़िला आज़मगढ़, मुहम्मदाबाद तहसील, ग्राम वहौर के निवासी थे। देश के इतने अन्दरूनी गांवों में भी ऐसे कई जियाले सपूतों ने जन्म लिया, जिनमें देश को आजाद कराने की जागरूकता मौजूद थी। यहां उर्दू की यह मिसाल सही साबित होती है कि-“खूने-नाहक़ राएगां नहीं जाता”
जब फ़िरंगियों ने भारत देश पर नाजायज़ क़ब्ज़ा करके आज़ादी के इन्किलाबियों पर जुल्म व सितम ढाए, उन्हें जेलों में बंद किया, उन पर गोलियां बरसाई गई, यहां तक कि उन मासूमों का बेतहाशा खून बहाया गया, उन बे-गुनाहों के बहे हुए खून के कारण पूरे देश में ऐसा माहौल बना, कि केवल शहरों में ही नहीं बल्कि दूर दराज़ के क़स्बे-क़स्बे, गांव-गांव और बस्ती-बस्ती में हज़ारों लाखों आज़ादी के मतवाले पैदा हो गए।
देश की आज़ादी पर मर मिटने के लिए तैयार
शैख रजब अली भी भारत देश के एक छोटे से गांव के गुमनाम शहीदे वतन थे, जिन्होंने भारत देश की आज़ादी की 1857 की लड़ाई में अपनी वीरता के कारनामे दिखाए। उनके साथी शैख मुब्बन, शेख बचई और ठाकुर परगन सिंह ने आस- पास के कई गांवों में घूम-घूम कर इन्किलाबियों को जमा किया।
अंग्रेज़ों में हड़कंप
उनके दिलों में आज़ादी की ज्योति को रोशन किया और लोगों को देश की आज़ादी पर मर मिटने के लिए तैयार किया। इसका नतीजा यह हुआ कि उन सभी सरफ़रोशों ने अपने अपने क्षेत्र में क्रांति के आन्दोलनों में भाग लेकर अंग्रेज़ों में हड़कंप मचा दी।
फ़िरंगी यह समझने लगे कि ज़िला आज़मगढ़ में भी उन्हें दमन चक्र की नीति लागू करनी पड़ेगी। योजना के तहत अंग्रेज़ों ने विद्रोहियों पर बल का प्रयोग शुरू कर दिया। शैख रजब अली के बहत से साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया। उस समय की गिरफ्तारियों के कारण शेख रजब अली चिन्ता में पड़ गए। हालांकि वह पहले से ही समझते थे कि ताक़तवर अंग्रेजों के खिलाफ़ विद्रोह का नतीजा तो यह होना ही था। रजब अली ने अपने अन्य साथियों की हिम्मत बंधाई। उन्होंने अगला कदम उठाने के लिए आपस में सोच-विचार किया।
कुछ समय बाद स्वतंत्रता सेनानी रजब अली ने अपने साथियों शैख मुब्बन, शैख बचई, चमरू, इज़्ज़त आदि के साथ आज़मगढ़ की कोतवाली पर ज़ोरदार हमला कर दिया। उन्होंने हवालात का ताला तोड़ कर उसमें बंद विद्रोहियों को रिहा कराने का बड़ा कारनामा अंजाम दे डाला।
शैव रजब अली का 1857 की क्रांति में योगदान
अंग्रेज़ शासन के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी। ब्रिटिश अधिकारियों के गुस्से का पारा सीमाओं को पार कर गया। इस दौरान रजब अली अंग्रेज़ों के पंजों से बच कर अगली रणनीति बनाने के लिए ममरुवापुर गांव में खामोशी से जाकर छुप गए। उधर ब्रिटिश सेना के अधकारियों ने क्रांतिकारी नेता शैख रजब अली को शीघ्र ही गिरफ्तार किए जाने के हुक्म जारी कर दिए। चारों ओर युद्ध स्तर पर तलाश शुरू हो गई। गांव का कोई भी घर या टपरा ऐसा नहीं बचा, जिसकी अंग्रेज़ सिपाहियों ने तलाशी न ली हो। रजब अली कहीं भी नज़र नहीं आए। जैसे-जैसे समय गुज़र रहा था, ब्रिटिश अधिकारियों के गोरे चेहरे कभी गुस्से में लाल होते और कभी उनके माथों पर लकीरों की संख्या बढ़ती जाती थी। परेशान सैनिक अधिकारियों ने आस-पास के सभी इलाक़ों में सी.आई.डी. का जाल बिछा दिया।
पूरे क्षेत्र में खौफ और परेशानी का माहौल बन गया। वह गांव वाले भी जो कि शैख रजब अली का पता नहीं जानते थे, परेशान थे। जो जानते थे वह भी हैरान थे, कि देखो अब क्या होता है। देश प्रेमी गांव वाले यह नहीं चाहते थे कि आज़ादी का नेता फिरंगियों की पकड़ में आए। शैख रजब अली की तलाश में ब्रिटिश सेना के घोड़ों की टापों ने पूरे गावों की धरती को रौंद डाला। आज़ादी के मतवाले रजब अली साधनों की कमी के कारण कहीं दूर नहीं जा सके। कुछ समय बाद सी.आई.डी. ने उनके छुपने का पता लगा कर अधिकारियों को सूचना दे दी। फिर क्या था, अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट बेनुबुल्स ने पूरी तैयारी से अपने सैनिक अमले के साथ ममरूवापुर गांव पर चढ़ाई कर दी। सैनिकों ने चारों ओर से गांव को पूरी तरह से घेर लिया।
तलवार से करारा जवाब
शैख रजब अली को यह मालूम हो गया कि वह चारों जानिब से अंग्रेज़ सेना के घेरे में आ चुका है। उसने तो अपने मन में ठान रखी थी कि अपने देश के लिए ही जीना है और देश के लिए ही मरना है। भारत के उस वीर सपूत ने कुछ देर सोचा फिर अपना मन पक्का करके अपनी तलवार उठाई।
वह जियाला, फ़िरंगियों से डरे बगैर ब्रिटिश सेना के घेरे में अकेले ही कूद पड़ा। भारत का वह बीर सपूत अपनी तलवार तेज़ी से घुमाता अंग्रेज़ सैनिकों के घेरे को चीरता और तोड़ता बाहर निकल गया। सैनिक उस अकेले रजब अली की बहादुरी देख आश्चर्य चकित रह गये। सैनिकों ने उसका पीछा किया। रजब अली आगे-आगे स्वंय को बचाता और फिरंगियों को थकाता रहा। जब उसको यह अन्दाज़ा हो गया कि अब वह सेना की पकड़ में आ सकता है तो उसने वहां वह रही टोंस नदी में बिना झिझके लम्बी छलांग लगा दी। ब्रिटिश सैनिक रजब अली के करतब देख कर हैरान थे। सैनिकों ने उसे नदी में कूदता देख नदी की चारों ओर से घेरा बंदी कर ली। वह क्रांति वीर कुछ समय तक तो नदी में तैरता रहा। उसने मैका पाकर नदी से बाहर निकल कर भागने की कोशिश की।
उस समय वहां ताक में बैठे एक फ़िरंगी सैनिक की गोली का वह शिकार हो गया। स्वतंत्रता सेनानी शैख रजब अली की लाश हाजीपुर घाट पर तड़पने लगी। क्रूर एवं मग़रूर अंग्रेज़ों के बदले की आग इस पर भी ठंडी नहीं पड़ी। उन्होंने उस शहीदे वतन की लाश को चारों ओर से घेर लिया। जालिमों ने उस शहीद के बदन को जगह-जगह से संगीनों से छेद कर ज़ख्मी कर डाला।
सिर काट कर बदन अलग किया
उसका सिर काट कर बदन से अलग कर दिया। एक शहीद की लाश के साथ अंग्रेज़ों का अमानवीय बरताव उनके जुल्म व सितम और दरिन्दगी व वहशीपन की निशानी है। उनके बदले की आग इस पर भी नहीं रुकी, बल्कि उन्होंने शहीद रजब अली के गांव का घर जला कर राख कर दिया। उनकी बक्रिया जायदाद जब्त कर ली गई।
फिरंगियों द्वारा बेदर्दी
शहीद शैख रजब अली की शव को देश प्रेम के जर्म में कायर फिरंगियों द्वारा बेदर्दी से कितनी सज़ाए दी गई उन्हें लिखने में क़लम थरौता है। गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिवीर शैख रजब अली शहीद की याद को ताज़ा करके प्रत्येक दिल देश प्रेम से भर जाता है।