कई समाजशास्त्रियों का विचार है कि भारतीय वर्ण-व्यवस्था में अधिकांश गुण जो हैं वे आधुनिक वर्ग व्यवस्था में भी पाये जाते हैं। मैकाइवर कथन है कि “सामाजिक वर्ग समुदाय का वह भाग है जो सामाजिक स्थिति के आधार पर शेष भाग से अलग कर दिया गया हो।”
वर्ग के समान वर्ण-व्यवस्था भी इस प्रकार श्रेणियों में विभाजित है कि प्रत्येक श्रेणी की सामाजिक स्थिति दूसरी से उच्च अथवा निम्न होती है। वर्ग की सदस्यता पूर्णतया अर्जित होती है जो प्रमुख रूप से व्यक्ति के गुण और क्षमताओं पर निर्भर करती है।
वर्ण-व्यवस्था में भी व्यक्ति के गुण तथा कर्मों को विशेष महत्व दिया जाता है। जिस प्रकार सामाजिक खुलापन होने के बाद भी व्यावहारिक रूप से व्यक्ति अपनी वर्गगत सदस्यता में बहुत कठिनता से कोई परिवर्तन कर पाता है, उसी प्रकार वर्ण-व्यवस्था में परिवर्तन की छूट होते हुये भी व्यवहार में इसकी सम्भावना बहुत कम होती है।
इसके बाद भी वर्ण तथा वर्ग में कुछ मौलिक अन्तर पाये जाते हैं, जो निम्न प्रकार से हैं :-
1. वर्गों के निर्माण का आधार इसके सदस्यों की आर्थिक स्थिति होती है। इसके विपरीत, वर्णन व्यवस्था पूर्णतया एक सामाजिक धारणा है। व्यक्ति आर्थिक जीवन में सफल हुये बिना भी अपने गुण और कर्मों के आधार पर उच्च वर्ण की प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकता है।
2. विभिन्न वर्ग सदैव एक दूसरे के विरोधी होते है। वर्गों की इसी विशेषता से वर्ग-संघर्ष का जन्म हुआ, जिसे एक स्वतंत्र अर्थव्यवस्था में रोक सकना असम्भव है। दूसरी ओर विभिन्न वर्ण की स्थिति एक-दूसरे से उच्च अथवा निम्न होने के बाद भी उनके बीच एक कार्यात्मक सम्बन्ध है।
3. वर्गों की संरचना एक पिरामिड के समान होती है जिसमें उच्च वर्ग के सदस्यों की संख्या सबसे कम लेकिन स्थिति सर्वोच्च होती है। जबकि निम्न वर्गों के सदस्यों की संख्या सबसे अधिक होते हुये भी उन्हें व्यवस्था में न्यूनतम अधिकार प्राप्त होते हैं।
दूसरी ओर, वर्ण-व्यवस्था में कार्यात्मक रूप से सभी वर्षों का महत्व समान होता है। इसके अतिरिक्त वर्ण व्यवस्था में यह भी आवश्यक नहीं है कि उच्च वर्ण की अपेक्षा निम्न वर्ण के सदस्यों की संख्या अधिक ही हो। यह उससे कम भी हो सकती है।
4. यह सच है कि वर्ण-व्यवस्था में व्यक्ति को अपनी स्थिति में परिवर्तन करने की सैद्धान्तिक छूट दी जाती है लेकिन व्यावहारिक रूप से व्यक्ति की सामाजिक स्थिति ‘जन्म’ पर ही आधारित रहती है। इसके विपरीत वर्ग की सदस्यता पूर्णतया अर्जित होती है, जिसमें किसी भी समय परिवर्तन किया जा सकता है।
5. वर्ण-व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति का व्यवसाय परम्परागत रूप से निश्चित होता है। वर्ग-व्यवस्था में व्यावसायिक जीवन पूरी तरह स्वतंत्र होता है। व्यक्ति अपनी रूचि और साधनों के अनुसार कोई भी व्यवसाय चुन सकता है।
6. वर्ण प्रायः अन्तर्विवाही होते हैं। साथ ही अनुलोम विवाह का प्रकार ही अपनाया जाता है। इसके विपरीत वर्ग-व्यवस्था के अन्तर्गत जीवन साथी का चुनाव अपेक्षाकृत रूप से बहुत स्वतंत्र वातावरण में होता है।
7. वर्ण-व्यवस्था सैद्धान्तिक रूप से उदार होते हुये भी व्यावहारिक रूप से अत्यधिक संकुचित है, जबकि वर्ग-व्यवस्था सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दोनों ही प्रकार से व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व को स्वीकार करती है।
FAQ
Q. वर्ण और जाति में प्रमुख अंतर क्या है?
A.वर्ण का अर्थ है “रंग”। “वर्ण” शब्द “वृ” शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है, किसी के व्यवसाय का चुनाव। इसलिए, वर्ण को एक रंग या संयोजन के साथ माना जाता है। दूसरी ओर, जाति या जाति शब्द “जन” से लिया गया है जिसका अर्थ है जन्म लेना।
Q. वर्ग और वर्ण में क्या अंतर होता है?
A.वर्ग का अर्थ क्लास है, वर्ण का अर्थ है रंग
Q. वर्ग और जाति में क्या अंतर है?
A. वर्ग का मतलब समाज के भीतर लोगों के एक समूह से है, जिनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति समान होती है। इसके विपरीत, जाति एक मानव निर्मित सामाजिक व्यवस्था है