ध्यान जीवन का आवश्यक अंग है इसके बिना जीवन अधूरा है। ध्यान हमारे भौतिक व आध्यात्मिक लक्ष्यों में सफलता दिलाने का साधन है। योग क्रियाएँ करते समय स्वतः ही ध्यान की स्थिति उत्पन्न होने लगती है। ध्यान सात्विक गुणों का विकास करते हुएरजस् व तमस् स्थिति का नाश करता है।
ध्यान का अर्थ है- “धारणा से अपनी चित्तवृत्ति को जिस विषय में लगाया जाये उसी विषय में उसे निरन्तर लगाए रखना” अर्थात् चित्त को अभीष्ट विषय पर लम्बे समय तक केन्द्रित करना। धारणा व समाधि के मध्य की स्थिति को ध्यान कहते हैं।
ध्यान की परिभाषाएँ (Definitions of Meditations)
ध्यान को शब्दों में परिभाषित करना सरल नहीं है परन्तु जिस ध्येय वस्तु में चित्त लगाया गया है उससे चित्त का एकाग्र हो जाना ध्यान है या सिर्फ एक वृत्ति की प्रवाह में चलना और दूसरी किसी वस्तु का ध्यान न होना ध्यान कहलाता है।
ध्यान की स्थिति में चित्त समाधि की ओर झुकता है। ध्यान में विशेष स्थिति एकाग्रीकरण की होती है जिससे वस्तु की स्थिति स्पष्ट हो जाती है। ध्यान से उस वस्तु का वास्तविक रूप स्पष्ट हो जाता है। ध्यान का प्राथमिक स्वरूप मन व मस्तिष्क का मौन हो जाना है। ध्यान चित्त की शक्तियों का ह्रास होने से बचाता है। इससे चित्त की चंचलता खत्म हो जाती है।
ध्यान के आवश्यक बिन्दु (Important Points of Meditation)
- ध्यान प्रात: 3-5 बजे के मध्य करना चाहिए।
- प्रतिदिन तीन बार 20-20 मिनट अवश्य ध्यान करना चाहिए।
- पद्मासन, वज्रासन व सिद्धासन ध्यान के मुख्य आसन हैं। (4) ध्यान अधिक ऊँचे आसन पर बैठकर नहीं करना चाहिए।
- विपरीत परिस्थितियों में ध्यान लाभकारी है।
- ध्यान करते समय मेरुदण्ड सीधी स्थिति में होना चाहिए।
- ध्यान करने से स्मरण शक्ति व समझने की शक्ति में वृद्धि होती है।
ध्यान के प्रकार (Types of Meditation)
ध्यान मुख्यतः दो प्रकार का होता है –
1. सगुण– इसमें ध्यान का विषय त्रिगुणात्मक होता है। सगुण ध्यान के दो रूप हैं-
(i) पादस्थ – इस ध्यान को ईष्ट देव के चरणों में किया जाता है
(ii) रूपस्थ – इसमें अपने ईष्टदेव के सम्पूर्ण स्वरूप का ध्यान करते हैं।
2. निर्गुण – इसका विषय त्रिगुणातीत परम ब्रह्म होता है। इसमे चित्त को निर्मल ज्योति स्वरूप पर एकाग्र करते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-
(i) नासाग्र- यह ध्यान नासिका के अग्रभाग पर दोनों नेत्रों की ज्योति को केन्द्रित कर किया जाता है।
(ii) भूमध्य – इस ध्यान में चित्त को दोनों नेत्रों के बीच ललाट के बीच नासिका के ऊपर (टीका वाले स्थान पर) एकाग्रित किया जाता है।
ध्यान के साधन (Medium of Meditation)
ध्यान के प्रमुख साधन निम्न प्रकार हैं-
(i) आसन– आसन को ध्यान का प्राथमिक साधन माना जाता है। आसन एक ऐसी क्रिया है जिसमें लम्बे समय तक बिना थकान के स्थिरता, सुख व शान्ति से चित्त को शान्त, स्थिर करके तनाव कम कर आध्यात्मिक उन्नति को बढ़ाया जाता है। इसके प्रमुख आसन हैं- पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन, भद्रासन, स्वास्तिकासन, वज्रासन आदि। आसन से चित्त को नियन्त्रित किया जा सकता है।
(ii) प्राणायाम– प्राणायाम ध्यान का अत्यन्त सरल व उत्तम माध्यम है। इसमें श्वास क्रिया से चित्त जोड़ते हैं क्योंकि इसमें चित्त श्वास क्रिया पर केन्द्रित हो जाता है। इस क्रिया से मन की गति सीमित होने लगती है। इस क्रिया में मन की चंचलता दूर होने के साथ-साथ चित्त एकाग्र व शान्त होता है।
(iii) ध्वनि योग- यह क्रिया चित्त स्थिर करती है। इसमें ध्वनि की गति को समान रखते हुए उस पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। इस योग में गले से आवाज नहीं निकालते हैं।
(iv) विचार दर्शन- ध्यान करते समय विचार आते हैं उन्हें आने देना चाहिए। इसे विचार दर्शन कहते हैं। कुछ समय अभ्यास करते रहने से चित्त में विचार थमने लगते हैं और चित्त में स्थिरता आती है।
(v) विचार विसर्जन – ध्यान करते समय आते हुए विचारों का विसर्जन करना चाहिए। इन्हें रोकना नहीं अपितु त्यागना चाहिए।
(vi) विचार सृजन– एक के बाद एक विचार आने पर उन्हें हटाते रहना चाहिए। प्रतिदिन अभ्यास चित्त को नियन्त्रित करता है।
(vii) अजपा जप– ध्यान करते हुए मन ही मन मन्त्र जाप किया जाता है। श्वास क्रिया से मन्त्र जाप को मिलाया जाता है। यह विधि मानसिक तनाव, क्रोध व चित्त को शान्त करती है।
(viii) त्राटक– इस क्रिया में किसी वस्तु या बिन्दु पर दृष्टि स्थिर की जाती है। त्राटक में आसन में बैठकर आँखों से डेढ़ गज की दूरी पर वस्तु को एकटक देखते हैं जब तक आँखों से आँसू न आ जाएँ। इस क्रिया को दोहराने से नेत्र सम्बन्धी समस्याएँ दूर हो जाती हैं।
(ix) चक्रों का ध्यान– मानव शरीर में सात महत्वपूर्ण चक्र होते हैं। इन चक्रों पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है-
(1) मूलाधार चक्र
(2) स्वाधिष्ठान चक्र
(3) मणिपुर चक्र
(4) अनाहत चक्र
(5) विशुद्धि चक्र
(6) आज्ञा चक्र
(7) सहस्रार चक्र।
ध्यान में प्रमुख बाधाएँ – ध्यान चेतन मन की प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपनी चेतना किसी बिन्दु पर केन्द्रित करता है परन्तु कुछ तत्व ध्यान का मार्ग अवरोध करते हैं और ध्यान में बाधा बनते हैं जो निम्नलिखित हैं-
1. शारीरिक रोग
2. दुश्चिन्ता
3. थकान
4. शोरगुल वातावरण
5. मानसिक तनाव
6. मन की चंचलता
7. आलस्य
8. प्रतिकूल मौसम
FAQ
Q. ध्यान के कितने भेद होते हैं?
A. आर्त्त-ध्यान, रौद्र-ध्यान, धर्म-ध्यान और शुक्ल-ध्यान।
Q. गीता के अनुसार ध्यान क्या है?
A. ध्यान एक योगक्रिया है, विद्या है, तकनीक है, आत्मानुशासन की एक युक्ति है जिसका प्रयोजन है एकाग्रता, तनावहीनता, मानसिक स्थिरता व संतुलन, धैर्य और सहनशक्ति प्राप्त करना।
Q. ध्यान क्या है? ध्यान एक अभ्यास है जिसमें मानसिक और शारीरिक तकनीकों के संयोजन का उपयोग करके अपने दिमाग को केंद्रित या साफ़ करना शामिल है।
A. एक अभ्यास है जिसमें मानसिक और शारीरिक तकनीकों के संयोजन का उपयोग करके अपने दिमाग को केंद्रित या साफ़ करना शामिल है।