विद्यालय से आप क्या समझते हैं? विद्यालय का अर्थ, आवश्यकता एवं प्रकार
विद्यालय का अर्थ एवं आवश्यकताएँ
विद्यालय से आशय उस स्थान अथवा संस्था से है जहाँ पर देश अथवा समाज की प्रत्येक नवजात पीढ़ी को उनकी क्षमता एवं बुद्धि के अनुरूप निश्चित विधि से सुप्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा उस राष्ट्र और समाज के विज्ञान, कला कौशल, धर्म, नैतिकता एवं दर्शन आदि को जीवन में प्रयोग करने का ज्ञान कराया जाता है।
विद्यालय के अर्थ को और स्पष्ट करने के लिए कुछ विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं, जो निम्न प्रकार हैं
(1) जे. एस. रॉस (J. S. Ross) के अनुसार, “विद्यालय वे संस्थाएँ हैं जिनको सभ्य मनुष्य द्वारा इस उद्देश्य से स्थापित किया जाता है कि समाज में सुव्यवस्थित और योग्य सदस्यता के लिए बालकों को तैयारी में सहायता मिले।”
(2) जॉन ड्यूवी (John Dewey) के अनुसार, “विद्यालय एक ऐसा विशिष्ट वातावरण है, जहाँ जीवन के कुछ गुणों एवं कुछ विशेष प्रकार की क्रियाओं तथा व्यवसायों की शिक्षा इस उद्देश्य से दी जाती है कि बालक का विकास वांछित दिशा में हो।”
विद्यालय की आवश्यकता (Need of School)
विद्यालय की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से होती है-
(1) सामाजिक विरासत की सुरक्षा तथा हस्तान्तरण हेतु,
(2) व्यक्तित्व के सामंजस्यपूर्ण विकास हेतु,
(3) शिक्षित नागरिकों के निर्माण हेतु,
(4) आदर्शों तथा विचारधाराओं के प्रसार हेतु,
(5) व्यक्ति के सामंजस्यपूर्ण विकास हेतु,
(6) प्रगति तथा विकास के लिए उपयुक्त वातावरण हेतु,
(7) समाज की निरन्तरता बनाए रखने हेतु,
(8) पारिवारिक जीवन तथा बाह्य जीवन को जोड़ने हेतु,
(9) बहुमुखी प्रतिभा के विकास हेतु।
विद्यालय के प्रकार (Types of Schools)
विद्यालय के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं—
(1) राजकीय विद्यालय (Government Schools)- राजकीय विद्यालय केन्द्र सरकार या राज्य सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम या स्वायत्त संगठनों द्वारा संचालित होते हैं। यह पूर्णरूपेण सरकार द्वारा वित्तपोषित होते हैं। भारत में अधिकांश विद्यालय सरकार द्वारा चलाये जा रहे हैं किन्तु फिर भी उन्हें विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
भारत के कुछ प्रमुख राजकीय विद्यालय निम्नलिखित हैं-
• राज्य सरकार विद्यालय,
• आश्रम विद्यालय,
• सैनिक स्कूल,
• एअर फोर्स, नवल स्कूल।
• केन्द्रीय विद्यालय,
• नवोदय विद्यालय,
• मिलेट्री स्कूल,
(2) स्थानीय निकाय विद्यालय (Local Body School) – इन विद्यालयों का संचालन नगरपालिका समितियों/निगमों/एन. ए. सी./जिला परिषद्/पंचायत समितियों/छावनी बोर्ड आदि के द्वारा किया जाता है। स्थानीय निकाय के विद्यालय किसी क्षेत्र की स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं द्वारा चलाए जाते हैं। इस प्रकार के विद्यालय प्रायः छोटे गाँवों, कस्बों अथवा शहरों में संचालित किए जाते हैं।
(3) सहायता प्राप्त निजी विद्यालय (Grant-Aided Private School)- इन विद्यालयों का प्रबन्धन निजी तौर पर किया जाता है तथा नियमित रख-रखाव के लिए अनुदान सरकार तथा स्थानीय निकायों या अन्य सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा प्राप्त होता है। प्रत्येक कक्षा के लिए अध्ययन सामग्री, पाठ्यक्रम तथा परीक्षाएँ आदि राजकीय नियमों के अनुसार निर्धारित की जाती हैं। इन विद्यालयों में सभी प्रकार के छात्रों को शिक्षा प्रदान की जाती है। सरकार द्वारा सभी विद्यालयों के लिए जो शुल्क संरचना, पी. टी. ए. फण्ड आदि निर्धारित किया जाता है वही शुल्क संरचना पी. टी. ए. फण्ड आदि इन विद्यालय के छात्रों द्वारा एकत्र किया जाता है तथा विद्यालय में शिक्षकों तथा कर्मचारियों की भर्ती भी सरकारी विद्यालय के मानदण्डों के आधार पर होती है। इन विद्यालयों में छात्रों के प्रवेश के लिए कोई विशेष मानदण्ड नहीं होते हैं।
(4) निजी तथा बिना सहायता प्राप्त विद्यालय (Private Unaided School)- विद्यालयों का प्रबन्धन किसी एक व्यक्ति या निजी संगठन द्वारा प्रबन्धित होता है। इन विद्यालयों को सरकार, स्थानीय निकाय अथवा सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा कोई अनुदान नहीं प्राप्त होता है। सरकारी विद्यालयों से निजी विद्यालयों की शुल्क संरचना भिन्न होती है। इन विद्यालयों में छात्रों का प्रवेश विशेष मानदण्डों के आधार पर होता है। विद्यालय पूर्ण रूप से निजी प्रबन्धन के नियन्त्रण में रहता है।
(5) विशिष्ट आवश्यकता वाले विद्यालय (School for Special Needs)- इस प्रकार के विद्यालयों में शारीरिक रूप से अक्षम बालकों को गैर-औपचारिक तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इन विद्यालयों में छात्रों की आवश्यकता के अनुसार ही पाठ-योजना का निर्माण किया जाता है।
(6) राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय (National Open School)- इन विद्यालयों के निर्माण का उद्देश्य ऐसे छात्रों को शिक्षा प्रदान कराना है जिन्होंने अपनी पढ़ाई किसी कारण बीच में छोड़ दी है या उच्च शिक्षा के लिए कॉलेजों में भी नहीं पहुँच पाते हैं। इन विद्यालयों की स्थापना मानव संसाधन विकास मन्त्रालय, भारत सरकार द्वारा शिक्षा की राष्ट्रीय नीति, 1986 के अन्तर्गत एक स्वायत्त संस्था के रूप में नवम्बर 1989 में हुई थी। इसमें माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक, जीवन संवर्द्धन और इसके अलावा सामान्य पाठ्यक्रम और अकादमिक पाठ्यक्रमों का ज्ञान छात्रों को प्रदान किया जाता है।
(7) अन्तर्राष्ट्रीय विद्यालय (International Schools)- अन्तर्राष्ट्रीय विद्यालयों का उद्देश्य छात्रों में अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा को बढ़ावा देना है। प्रायः इन विद्यालयों के पाठ्यक्रम का निर्माण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के अनुरूप या कैम्ब्रिज अन्तर्राष्ट्रीय परीक्षा के अनुरूप किया जाता है। इन विद्यालयों का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य दूसरे देश के स्थानीय छात्रों को अन्तर्राष्ट्रीय विद्यालयों की भाषा सिखाना तथा उन्हें विदेश में रोजगार एवं उच्च शिक्षा हेतु योग्य बनाना होता है।
FAQ
Q. विद्यालय का उद्देश्य क्या है?
A. स्कूल का मुख्य उद्देश्य बच्चे के लिए सीखना आसान और रोचक बनाना है।
Q. विद्यालय का क्या महत्व है?
A. विद्यालय के अनुशासित वातावरण में बालक शिक्षा के साथ- साथ धर्म, सहयोग, उत्तरदायित्व आदि जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों को अपना कर एक अच्छे नागरिक बनकर देश के विकास में अपना सहयोग देते है।
निष्कर्ष
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