आदिवासी अपवर्जन – Tribal Exclusion

By Arun Kumar

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सामान्यतः आदिवासी शब्द का प्रयोग किसी भौगोलिक क्षेत्र के उन निवासियों के लिए किया जाता है, जिनका उस भौगोलिक क्षेत्र से पुराना सम्बन्ध हो। अधिकांश आदिवासी, संस्कृति के प्राथमिक धरातल पर जीवन-यापन करते हैं। वह सामान्यतः क्षेत्रीय समूहों में रहते हैं और रूढ़िवादी विचारधारा के होते हैं। इनमें होने वाला सांस्कृतिक परिवर्तन अपेक्षाकृत सीमित होता है।

सूदूरवर्ती क्षेत्रों में निवास करने वाले आदिवासी समूह आज भी आधुनिक जीवन पद्धति से पृथक अपनी पारम्परिक जीवन को जीते हैं। रूढ़िवादी विचारधारा के कारण ये समूह सामान्य व्यवस्था से अलग रहना पसन्द करते हैं। प्राकृतिक प्रेमी होने के कारण आदिवासी समूह प्राकृतिक संरक्षण के प्रति अधिक सजग एवं गम्भीर होते हैं, इसलिए ये किसी भी बाहरी व्यक्ति को अपने क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देते हैं।व्यावसायिक दृष्टि से भी यह काफी पिछड़े होते हैं, किन्तु वर्तमान में आदिवासियों के इस स्वरूप में बदलाव आया है और वह भी अन्य व्यक्तियों की भाँति बाह्य जगत से सम्बन्धित हो गए हैं। आदिवासी अपवर्जन से तात्पर्य है कि आज भारतीय समाज में आदिवासियों की संख्या काफी सीमित हो गई है और हमें कुछ ही क्षेत्रों में यह देखने को मिलते हैं। आज इन्होंने भी उन्नति व प्रगति करके समाज में अपना पृथक स्थान बना लिया है।

आदिवासी अपवर्जन एवं वन अधिकार कानून, 2006 -Tribal Exclusion and Forest Rights Act, 2006

वनों में रहने वाले कई आदिवासी परिवारों की विषम जीवन स्थिति को दूर करने के लिए अनुसूचित जाति एवं अन्य पारम्परिक वन निवासी अधिनियम, 2006 का ऐतिहासिक कानून अमल में लाया गया है। इस कानून को, जंगलों में रहने वाले अनुसूचित जातियों एवं अन्य पारम्परिक वन निवासियों को उनका वाजिब अधिकार दिलाने के लिए जो पीढ़ियों से जंगलों में रह रहे हैं, लेकिन जिन्हें वन अधिकारों तथा वन भूमि में आजीविका से वंचित रखा गया है, लागू किया गया है।

इस अधिनियम में न केवल आजीविका के लिए स्व-कृषि या निवास के लिए व्यक्ति विशेष या समान पेशा के तहत वन भूमि में रहने के अधिकार का प्रावधान है बल्कि यह वन संसाधनों पर उनका नियन्त्रण सुनिश्चित करने के लिए कई अन्य अधिकार भी देता है। इनमें स्वामित्व का अधिकार, संग्रह तक पहुँच, लघु वन उपज का उपयोग व निपटान, निस्तार जैसे सामुदायिक अधिकार; आदिम जनजातीय समूहों तथा कृषि-पूर्व समुदायों के लिए निवास के अधिकार; ऐसे किसी सामुदायिक वन संसाधन जिसकी वे ठोस उपयोग के लिए पारम्परिक रूप से सुरक्षा या संरक्षण करते रहे हैं, विरोध, पुनर्निर्माण या संरक्षण या प्रबन्धन का अधिकार शामिल है।

इस अधिनियम में ग्राम सभाओं की अनुशंसा के साथ विद्यालयों, चिकित्सालयों, उचित दर की दुकानों, बिजली तथा दूरसंचार लाइनों, पानी की टंकियों आदि जैसे सरकार द्वारा प्रबन्धित जन उपयोग सुविधाओं के लिए वन जोवन केउपयोग का भी प्रावधान है। इसके अतिरिक्त जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा आदिवासी लोगों के लाभ के लिए कई योजनाएँ भी क्रियान्वित की गई हैं। इनमें वन क्षेत्रों के लिए ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के जरिये लघु वन उपज (एमएफपी) के विपणन के लिए तन्त्र तथा एमएफपी के लिए वैल्यू चेन के विकास’ जैसी योजनाएँ भी शामिल हैं। वन ग्रामों के विकास के लिए सम्पर्क, सड़कों, स्वास्थ्य देखभाल, प्राथमिक शिक्षा, लघु सिंचाई, वर्षा जल खेती, पीने के पानी, स्वच्छता, समुदाय हॉल जैसी बुनियादी सेवाओं तथा सुविधाओं से सम्बन्धित ढाँचागत कार्यों के लिए जनजातीय उप योजना को विशेष केन्द्रीय सहायता से फंड जारी किये जाते हैं।

धारा 3(1) (एच) के अन्तर्गत अनुसूचित जनजाति (ST) एवं अन्य पारम्परिक वन क्षेत्र निवासियों (वन अधिकार मान्यता) अधिनियम 2006 के तहत वन्य गाँव, पुराने आबादी वाले क्षेत्रों, बिना सर्वेक्षण वाले गाँव तथा वन क्षेत्र के अन्य गाँव, भले ही वह राजस्व गाँव के रूप में अधिसूचित हो या नहीं हो, इसके स्थापन एवं परिवर्तन का अधिकार यहाँ रहने वाले सभी अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पारम्परिक वन निवासियों को प्राप्त है।अधिनियम के प्रावधानों और बनाए गए नियमों के मुताबिक अन्य कानूनों की तरह ही वन्य गाँवों को राजस्व गाँवों में परिवर्तित करने के वन अधिकार ग्राम सभा, उप मण्डल स्तरीय समिति और जिला स्तरीय समिति के क्षेत्राधिकार में आते हैं।

निष्कर्ष

जनजातीय मामलों के मन्त्रालय ने 8 नवम्बर, 2013 को अन्य बातों के साथ सभी राज्य एवं केन्द्र शासित प्रदेशों को चिन्हित करते हुए अलिखित रिकॉर्ड समझौते और राजस्व गाँवों में पुराने आवासों को लेकर तत्कालीन आधार पर समयबद्ध ढंग से दिशानिर्देश जारी किए हैं। वन्य गाँवों से राजस्व गांवों के रूपान्तरण में वर्तमान या भविष्य में स्कूल, स्वास्थ्य सेवाओं, सार्वजनिक स्थलों जैसी सामुदायिक आवश्यकताओं समेत गाँवों में भूमि के उपयोग की वास्तविकता को शामिल किया जाएगा।

FAQ

Q. आदिवासी संस्कृति

A. आदिवासी संस्कृति में पुरुष और महिला का विवाह “ग्राम पंचायत” के पंच द्वारा आपसी सहमति से तय किया जाता है।

Q. भारत में आदिवासी का धर्म क्या है?

A. आदिवासियों का अपना धर्म भी है। ये प्रकृति-पूजक हैं और वन, पर्वत, नदियों एवं सूर्य की आराधना करते हैं। आधुनिक काल में जबरन बाह्य संपर्क में आने के फलस्वरूप इन्होंने हिन्दू, ईसाई एवं इस्लाम धर्म को भी अपनाया है।

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