- यूपीटीटीआइ की डा. नीलू कांबो के अनुसंधान को मिला पेटेंट
- स्वास्थ्य कर्मियों के कपड़े सुरक्षित बनाना हो सकेगा आसान
कानपुर: आम के आम और गुठलियों के दाम, इसे आपने मुहावरे में ही सुना होगा लेकिन अब वही आम की गुठली बाजार में अपनी अहमियत बताने के लिए तैयार है। उप्र. वस्त्र प्रौद्योगिकी संस्थान (यूपीटीटीआइ) की विज्ञानी डा. नीलू कांबो और उनके सहयोगी डा. सौरभ दुबे ने शोध से आम की गुठली से कपड़ों और खाद्य पदार्थों को बैक्टीरिया व फंगस रोधी बनाने की विधि विकसित की है।
उनके अनुसंधान को भारत सरकार का पेटेंट भी मिल गया है। अब शोध को बाजार में उतारने की तैयारी है। डा. नीलू कांबो ने बताया कि आम की गुठली को अभी तक बेकार समझकर फेंक दिया जाता है। आम के अचार, जैम और जूस बनाने वाले उद्योगों से बड़े पैमाने पर गुठली का कचरा बाहर फेंका जाता है। अब इस गुठली का प्रयोग बैक्टीरिया और फंगस रोधी पदार्थ बनाने में किया जा सकेगा।
इसके लिए आम की गुठली और खाद्य उद्योगों में प्रयोग होने वाले पदार्थों का प्रयोग किया गया है। इससे एक नैनो इमल्शन प्राप्त हुआ है, जो पूरी तरह जैविक है। इसका जब प्रयोगशाला में परीक्षण किया गया तो पता चला कि इसमें एंटी माइक्रोबियल तत्व मौजूद हैं, जो विभिन्न तरह के बैक्टीरिया को रोकने में सक्षम हैं। बैक्टीरिया प्रयोग के बाद फंगस पर भी प्रयोग किया गया तो परिणाम सकारात्मक रहे। कपड़ों और मांस पर किया जा सकेगा प्रयोगः बताया कि इस तरल पदार्थ का कपड़ों में स्प्रे किया गया तो कपड़ों पर बैक्टीरिया का कोई असर नहीं हुआ। कपड़ों को पूरे दिन तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
स्वास्थ्य कर्मियों के प्रयोग वाले कपड़ों पर इसकी कोटिंग की जा सकेगी। इससे कपड़ों को अधिक समय के लिए सुरक्षित किया जा सकेगा। खाद्य पदार्थों में मांस पर बैक्टीरिया का हमला सबसे तेजी के साथ होता है। मांस की पैकिंग पर अगर इसका स्प्रे किया जाए तो बैक्टीरिया का असर नहीं होगा और लंबे समय तक उसे सुरक्षित रखा जा सकेगा। घरों और कार्यालयों के फर्श की सफाई के लिए भी इसका प्रयोग किया गया है।