पारिभाषिक शब्दावली (GLOSSARY OF LERMS)बस्ती (Colony): मानव द्वारा निर्मित आवासों का संगठित स्वरूप बस्ती कहलाता है।
गाँव (Village): घरों का एक ऐसा समूह जिसकी एकनिश्चित स्थानीय सीमा तथा एक नाम होता है। यह ऐसा लघु समुदाय है जो प्राथमिक, अनौपचारिक संबंधों की प्रधानता एवं समरूपता से युक्त होता है। जनसंख्या की दृष्टि से कम घनत्व वाला होता है और व्यवसाय की दृष्टि से कृषि प्रधान होता है।
कस्बा (Town): मानवीय आवास का वह स्वरूप जो अपनेजीवनक्रम एवं क्रियाओं में ग्रामीण एवं नगरीय दोनों प्रकार के तत्वों को संजोये रखता है या जब बड़े गांव/केन्द्रीय गाव में नगरीय गतिविधियाँ विकसित होने लगती हैं तो यह कस्बा कहलाता है।
नगर (City): एक नगर अत्यधिक वृहद् आकार तथाजनसंख्यात्मक घनत्व वाला एक ऐसा समुदाय है, जिसके निवासी विविध और अकृषिक कार्यों में संलग्न होते हैं, जिनकी विशिष्ट जीवन शैली होती है, जो प्रायः ग्रामीण जीवन शैली से भिन्न होती है।नगरवाद (Urbanism): नगरीय जीवन के साथ व्यक्तियों के समायोजन की प्रक्रिया अर्थात् नगर के लोगों के जीवन का तरीका, नगरीयता/नगरवाद कहलाता है।
नगरीकरण (Urbanisation): नगरवाद के लक्षणों के विकास (विचारों एवं व्यवहारों के रूप में) एवं प्रसार कीप्रक्रिया नगरीकरण कहलाती है।
शहरी विकास (Urban Growth): मानव की आखेट अवस्था से नगरीय अवस्था तक की यात्रा, जहाँ नगर की संख्या में वन्दि होती है शहरी विकास कहलाता है।गई जनसंख्या, नगर के साथ समायोजित हो गयी वहीं विकासशील देशों में इसका समायोजन नगर के साथ नहीं हो पाया है। नगर की आर्थिक एवं संरचनात्मक क्षमता से अधिक जनसंख्या का नगर में केन्द्रीकरण हो गया है और इन सब की आवश्यकताओं को पूरा करने में नगर असहाय महसूस कर रहा है।
उपनगर (Suburbs): किसी बड़े नगर की परिधि पर बसा हुआ अपेक्षाकृत एक लघु समुदाय जो सामान्यतः अपनी आर्थिक आवश्यकता आदि के लिए मुख्य नगर पर निर्भर रहता है, किन्तु राजनीतिक इकाई की दृष्टि से वह मुख्य नगर से स्वतंत्र होता है।
उप-नगरीकरण (Sub-Urbanisation): उपनगरीकरण की यह प्रक्रिया नगरों के परिधीय विस्तार को प्रकट करती है। प्रारम्भ में यह विस्तार जनसंख्या के बाह्य प्रवास एवं आर्थिक क्रियाकलापों के द्वारा घने नगरीय क्षेत्रों से कम घनी, सटी हुई बस्ती के रूप में होता है।नगरीय फैलाव (Urban Sprawl): जब नगर से बाहर कम नगरीय घनत्व वाले क्षेत्रों (जो क्षेत्र कृषि के लिए प्रयोग किये जाते हैं) पर अनियोजित रूप में नगर का विकास हो तो यह शहरी फैलाव कहलाता है।
जीवन निर्वाह नगरीकरण (Substantial Urbanisation): भारत में गांव से नगरों की ओर प्रवासित व्यक्ति नगरों के साथ पूर्णता से समायोजित नहीं हो पाये हैं और उन्हें झुग्गी-झोपड़ी या मलिन बस्तियों में जीवन बिताना पड़ रहा है। यद्यपि वे नगरों में ही रहते हैं तथापि वे इस अर्थ में वहां से अनुपस्थित होते हैं कि इनके पास न तो नगरीय जीवन में किसी तरह का कोई योगदान देने की और न ही नगरीय सुख सुविधाएँ भोगने की क्षमता एवं साधन होते हैं। यह स्थिति निर्वाह प्रातरीकरण कहलाती है।