विविधता से क्या समझते हैं; विविधता का अर्थ एवं अवधारणा

By Arun Kumar

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कक्षा-कक्ष में विविधताओं से क्या अभिप्राय: भारत विभिन्नताओं का देश है तथा इसके प्रत्येक भाग में विविधता का समावेश है। विविधता से तात्पर्य प्रायः भौगोलिक, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा शारीरिक आदि में असमानता से है

विविधता का अर्थ एवं अवधारणा – Meaning and Concept of Diversity

भारत विभिन्नताओं का देश है तथा इसके प्रत्येक भाग में विविधता का समावेश है। विविधता से तात्पर्य प्रायः भौगोलिक, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा शारीरिक आदि में असमानता से है। इन्हीं असमानता के द्वारा ही ऊपर दिये गये सभी तथ्यों में असमानता परिलक्षित होती है। ये भिन्नताएँ भारतीय समाज के मौलिक आधारों और उनमें होने वाले परिवर्तनों को समझने में सहायक हैं।

भारत में विभिन्न प्रकार की प्रजाति, जाति, जनजाति, भाषा, धर्म, जलवायु, भौगोलिक परिस्थितियाँ, खान-पान, वेश भूषा आदि के आधार पर विविधता देखने को मिलती है। यहाँ अनेक संस्कृतियों में सह-अस्तित्व पाया जाता है।

हमारे देश में कुछ बाहरी संस्कृतियों का समावेश होने के कारण यहाँ विभिन्न भाषाओं, धर्मों, प्रथाओं, वेश-भूषा, रीति-रिवाजों तथा विचारों की विविधता समाज में उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के आधार पर दृष्टिगोचर होती है।

जब हमारे समाज की संरचना विविधता से परिपूर्ण है तो समाज तथा देश को एक नई दिशा प्रदान करने वाली शिक्षण संस्थाएँ इस विविधता से कैसे अछूती रह सकती हैं, क्योंकि ये शिक्षण संस्थाएँ भी तो समाज का ही एक अंग हैं चाहे वह उच्चस्तरीय शिक्षण संस्था हो या माध्यमिक संस्था अथवा प्राथमिक स्तर के संस्थान ही क्यों न हों।

विविधता के विभिन्न स्तर – Various Levels of Diversity

हमारे देश में विभिन्न स्तरों पर विविधता विद्यमान है जो देश के प्रत्येक प्रान्त, क्षेत्र, समाज, भाषा एवं संस्कृति के आधार पर विभिन्न स्तरों में बाँटती है। इन स्तरों के आधार पर विद्यालयों तथा विद्यालयों के कक्षा-कक्ष में भी विविधता के अलग-अलग रूप परिलक्षित होते हैं।

(1) धार्मिक स्तर पर विभिन्नता- सामान्य रूप से भारत में अनेक धर्मों का समावेश पाया जाता है। विश्व में शायद ही कोई ऐसा कोई देश होगा जहाँ धर्मों की इतनी विविधता एवं बहुलता पाई जाती हो। हमारे देश में मुख्यतः हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन आदि धर्म पाए जाते हैं।

अतः विद्यालयों की तमाम कक्षाओं में भी विभिन्न धर्मों के छात्र तथा अनेक मत-मतान्तरों के विद्यार्थी तथा शिक्षक (अध्यापक) भी पाये जाते हैं। अतः विद्यालय की कक्षाएँ धर्मनिरपेक्षता (विविधता) का जीता जागता उदाहरण है।

(2) भाषा स्तर पर विविधता – व्यक्ति/मनुष्य अपने विचारों का प्रकीटकरण भाषा के माध्यम से ही करता है तथा भाषा के द्वारा ही व्यक्तियों का समूह, विद्यार्थियों का समूह या शिक्षक-शिक्षार्थी समूह परस्पर अन्तः क्रिया करते हैं।

भाषा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा शिक्षा, संस्कृति, इतिहास, साहित्य से सम्बन्धित विभिन्न तत्व लिखित रूप में संचित एवं पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित होते रहते हैं। वास्तव में भाषा विद्यार्थियों के शैक्षिक, सांस्कृतिक, सामुदायिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय जीवन का आधार है।

(3) जाति स्तर पर विविधता– भारत एक विशाल जातीय विविधता वाला देश है। भारत में लगभग 30 हजार जातिगत समूह हैं, प्रत्येक जाति के अपने खान-पान, विवाह तथा सांस्कृतिक नियम हैं। विद्यालयों की कक्षाओं में भी जाति स्तर पर विविधता प्रायः ऊँच-नीच एवं निश्चित व्यवसाय के आधार पर, छुआछूत की भावना के आधार पर दिखलाई पड़ती है।

अतः कक्षाओं में विद्यार्थियों में जाति पर उनका खान पान, परिवार तथा नातेदारी व्यवस्था मेंभी विविधता देखने को मिलती है।

(4) वैयक्तिक स्तर पर विविधता– हमारा देश भारत एक वैयक्तिक विभिन्नता वाला देश है। वैयक्तिक आधार पर प्रत्येक व्यक्ति में कुछ-न-कुछ विषमताएँ अवश्य पाई जाती हैं।

अतः विद्यालयों में भी वैयक्तिक आधार पर गोरे, काले रंग के तथा लम्बे, छोटे एवं मोटे लोगों में भेद व पतले, मोटे स्तर के आधार पर भी विद्यार्थियों में विविधता देखने को मिलती है।

(5) क्षेत्रीय स्तर पर विविधता– हमारे देश में क्षेत्रीय स्तर पर विविधताएँ इतनी अधिक हैं कि कहीं तो आज भी अभावमय जीवन तो कहीं विलासितापूर्ण जीवन है, कहीं लोग पशु पालन करते हैं तो कहीं लोग उद्योग-धन्धों की सहायता से आजीविका कमा रहे हैं। क्षेत्रीय स्तर पर विद्यालयों की कक्षाओं में विद्यार्थियों में उनकी भाषा, संस्कृति, रीति- रिवाज आदि के आधार पर तमाम विविधताएँ पायी जाती हैं।

(6) लैंगिक स्तर पर विविधता– भारत में विविधता प्रायः लैंगिक स्तर पर पाई जाती है। समाज में सभ्य कहे जाने वाले लोग, परिवार में माता-पिता द्वारा तथा विद्यालयों में विद्यार्थियों (छात्र-छात्राओं) के साथ लड़का और लड़की के आधार पर विभेद किया जाता है। यह स्थिति लैंगिक विविधता के कारण ही उत्पन्न होती है।

(7) बालकों की विशिष्टताओं के आधार पर विविधता– विद्यालयों की कक्षाओं में विविधतापूर्ण बालक होते हैं जो कि एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। कक्षा में ऐसे तमाम विशिष्ट वालक भी होते हैं जो सामान्य बालकों से शारीरिक, मानसिक व सामाजिक क्षेत्र में बहुत भिन्न होते हैं।

अतः ऐसे बालकों को विविधता के कारण विशिष्ट प्रकार की शिक्षा या अनुदेशन की आवश्यकता होती है इसीलिए इन विशिष्ट बालकों के लिए विशेष शिक्षा की व्यवस्था की जाती है।

अन्त में यह कहा जा सकता है कि विद्यालयों की कक्षाओं में सभी स्तरों पर विविधता का व्यापक रूप देखा जा सकता है। भारत में वैयक्तिक, जातिगत, क्षेत्रीय, भाषाई आधार पर बालकों में भी विशिष्टता देखने को मिलती है। मुख्य रूप से कक्षाओं में विविधताओं से अभिप्राय विशिष्ट बालकों से है।

निष्कर्ष

भारत में वैयक्तिक, जातिगत, क्षेत्रीय, भाषाई आधार पर बालकों में भी विशिष्टता देखने को मिलती है। विद्यालयों में भी वैयक्तिक आधार पर गोरे, काले रंग के तथा लम्बे, छोटे एवं मोटे लोगों में भेद व पतले, मोटे स्तर के आधार पर भी विद्यार्थियों में विविधता देखने को मिलता है।

FAQS

Q. विविधता क्या क्या अर्थ है?

A. विविधता का मतलब अपने आप में कई चीजें हो सकती हैं। परिभाषा अपने आप में विविधता का एक रूप है। अर्थ विविधता या अलग होने की स्थिति या तथ्य से लेकर विभिन्न प्रकार की राय तक हो सकते हैं।

Q. विविधता का क्या अर्थ है?

A. विविधता मानवीय मतभेदों की श्रेणी है, जिसमें नस्ल, जातीयता, लिंग, लैंगिक पहचान, यौन अभिविन्यास, आयु, सामाजिक वर्ग, शारीरिक क्षमता या गुण, धार्मिक या नैतिक मूल्य प्रणाली, राष्ट्रीय मूल और राजनीतिक विश्वास शामिल हैं

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