फैशन एवं सामाजिक नियन्त्रण

By Arun Kumar

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फैशन एवं सामाजिक नियन्त्रण (FASHION AND SOCIAL CONTROL) – मानव नवीनता व भिन्नता के लिए परिवर्तन चाहता है। वह प्राचीन आदर्शों का अन्धानुकरण करता हुआ भी नवीनता व परिवर्तन का प्रेमी है।

इस विरोधाभास की पूर्ति वह इस प्रकार के सामाजिक प्रतिमान द्वारा करता है जो यद्यपि थोड़े समय तक प्रचलन में रहते हैं किन्तु जितने समय तक चलते हैं उत्तने समय तक मनुष्य उनके प्रति पूरी निष्ठा दिखलाता है। इन सामाजिक प्रतिमानों को फैशन, धुन या सनक (craze) कहते हैं। जनरीतियां, लोकाचार, प्रथा, परम्परा, नैतिकता, परिपाटी एवं शिष्टाचार में अपेक्षाकृत स्थायित्व पाया जाता है।

जबकि फैशन पूर्णतः अस्थायी प्रकृति की होती है। स्पेन्सर ने फैशन को प्रथाओं के बीच पाए जाने वाले भेदों को दूर करने वाला साधन माना है। उसने कहा कि जब प्रथाओं का पतन होता है तो फैशन का अधिक प्रचलन होता है। उसका मत था कि औद्योगीकरण की वृद्धि के साथ-साथ फैशन का प्रचलन भी बढ़ा है।

गेव्रिल टाडे ने प्रथा व फैशन में भेद किया है। वह कहता है-प्रथा ‘पूर्वजों का अनुकरण’ है और फैशन ‘समकालीनों का अनुकरण’। फैशन आचरण के उन पहलुओं तथा अभिव्यक्तियों को नियन्त्रित करती है जो प्रया की पकड़ से अलग होते हैं। नवीनतम एवं अनुरूपता- इन दो विरोधी मनोवैज्ञानिक तत्वों का समन्वय हम फैशन में देख सकते हैं।हमारे अधिकांश व्यवहार फैशन पर ही आधारित होते हैं।

हम कपड़े खरीदने, वस्त्र सिलने, बाल बनाने, जूते पहनने, घर की सजावट करने, फर्नीचर बनाने, आभूषण पहनने, मेहमानों का आदर-सत्कार करने एवं भाषा का प्रयोग करने में फैशन द्वारा प्रभावित होते हैं। इस प्रकार फैशन हमारे व्यवहार को प्रभावित, परिवर्तित एवं नियन्त्रित करती है। हम फैशन का अनुकरण करते हैं और उसी के अनुरूप अपने को ढालने का प्रयत्न करते हैं।

फैशन का अर्थ एवं परिभाषा – MEANING AND DEFINITION OF FASHION

सामान्यतः फैशन का अर्थ वेश-भूषा व केश विन्यास में होने वाले नवीन परिवर्तनों से लगाया जाता है। किन्तु वास्तव में फैशन का सम्बन्ध जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समय के साथ आने वाले नवीन परिवर्तनों से है। फैशन व्यवहार के पुरातन तरीकों में परिवर्तन की द्योतक है।

इस सन्दर्भ में हम यहां फैशन की कुछ परिभाषाओं पर विचार करेंगे:

फैशन को परिभाषित करते हुए किम्बाल यंग लिखते हैं, “फैशन वह प्रचलन या फैली हुई रीति, तरीका कार्य करने का ढंग, अभिव्यक्ति की विशेषता या सांस्कृतिक लक्षणों को प्रस्तुत करने की विधि है जिसे बदलने की आज्ञा स्वयं प्रथा देती है।”

मैकाइबर एवं पेज लिखते हैं, “फैशन से हमारा तात्पर्य किसी प्रथागत विषय पर समाज-स्वीकृत भिन्नता के क्रम से है।’

जेम्स ड्रेबर के अनुसार, “फैशन सामाजिक परिपाटी का एक ऐसा प्रकार या पहलू है जिसकी मुख्य विशेषता उसकी चदली हुई प्रतियोगी प्रकृति है।

वियोडोरसन के अनुसार, “फैशन व्यवहार का वह रूप है जिसे एक समय विशेष में सामाजिक स्वीकृति प्राप्त होती है, किन्तु यह समय के साथ बदलती रहती है। फैशन के आदशों में प्रतिमानित पत्रक स्वीकृति रहते हैं। इस प्रकार का परिवर्तन संस्कृति द्वारा स्वीकृत एवं अपेक्षित होता है। फैशन में विपद्यगमन आपले अनुरूपता दोनों ही होते हैं अर्थात् इसमें परम्परात्मक व्यवहारों में विपथगमन एवं प्रचलित लोकप्रिय मानको से अनुरूपता पायी जाती है।”

रॉस के अनुसार, “फैशन किसी भी जनसमूह की पसन्द में होने वाले क्रमिक परिवर्तनों को कहते हैं जो उपयोगिता द्वारा निर्धारित नहीं होते यद्यपि उनमें उपयोगिता का तत्व भी सम्मिलित हो सकता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि फैशन का सम्बन्ध मानवीय व्यवहार से सम्बन्धित एक समाज अथवा समूह की पसन्द से है।

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